Monday, May 24, 2010
खता क्या है हमारी...
चन्द दिनों में उन्होंने बेगाना कर दिया,
जो पूछी हमने उनसे अपनी ख़ता
बेरहमी का इलज़ाम हमपे उन्होंने लगा दिया...
- नीरज
Sunday, May 2, 2010
ये दर्द अब सहा नहीं जाता..
जब वोह तड़पे हमारी एक झलक को,
इस क़दर दूर हो जाएँ जब वोह पास हमारे आये,
चूम न सकें वोह कभी हमारी पलकों को...
काश एक दिन ऐसा भी आता,
जब हमारा ये दिल उनके पास होता,
तो फिर महसूस कर सकते वोह हमारे दर्द को,
फिर शायेद यूँ न हमें ठुकराया होता...
हमारी मोहब्बत में थी इतनी कशिश,
उन्हें बना दिया एक फूल जो हमेशा मेहेकता है,
उनकी बेरुखी भी कोई कम न थी,
हमें बना दिया वोह काँटा जो हर पल चुभता है...
सोचा दिल से नफरत करें उनसे कभी हम,
ऐसा हो की तरसे वोह भी किसी के प्यार को,
कुदरत का तमाशा तो देखो ऐ दोस्तों,
हमारी बददुआ भी दुआ बनके लगी यार को...
-नीरज
Sunday, January 10, 2010
आखिर क्यूँ...
क्या हमारी बेइंतेहा मोहब्बत और नीयत पर भरोसा नहीं,
दिल आपके क़दमों में रख दिया हमने कबसे ऐ संगदिल सनम,
और आप कहते हो हमें झुककर ज़मीन पर देखने की आदत नहीं…
ऐसा तो नहीं की खुदा ने तुम्हे पत्थर दिल बनाया है,
इश्क में फ़ना हो जाना तो हमने तुमसे ही सिखा है,
क्यूं फिर प्यार की एक बूँद के लिए तड़पाते हो हमें,
जब इश्क का समंदर तुम्हारे दिल में बहता है…
खुदा से भी ज्यादा खौफ़ है दिल में तुमसे दूर जाने का,
इसलिए दिखा न सका तुम्हे पाने की ये बेक़रारी,
सोचा क्या पाऊँगा ऐसी इज़हार-ए-मोहब्बत से,
जो तेरे बिछड़ने का दर्द साथ लेके आएगी…
चैन से बैठे हो तुम आज भी हमें तड़पता देखकर,
इस बात की तसल्ली है तुम्हे,की मेरी आखरी सांस तुम्हारे नाम की ना होगी,
शायेद इस बात से बेखबर हो की मौत सिर्फ जिस्म मिटा देती है,
क्या कभी इस रुह से खुद को जुदा कर पाओगी…
Monday, November 30, 2009
तुझे भूलना मुमकिन नहीं...
एक हाथ में जाम और दूसरे में ज़हर का प्याला लिए,
कम्बख्त इस पेशोपेश में पड़ गया हमारा ये घायल मनं,
जब ये नींद कभी हमारी न हुई तो ये मौत क्यों न बेवफाई करेगी...
इलज़ाम तो बहुत लगाया तुमने हमपे,
कभी खुदगर्ज़ी का तो कभी बेरुख़ी का,
इक बार तो अपनेपन से हक जताया होता हमपे,
साड़ी दुनिया को छोर चले आते हम जो तुमने हमें पराया न किया होता…
दिल हमारा था ये ज़ख़्मी ,पर आपसे छुपाना पड़ा,
आँखें हमारी नम थी पर मुसुकराना भी पड़ा,
अजीब बेदर्द होते है ये एह्सास के रिश्ते,
रूठना चाहते थे आपसे ,पर मनाना पड़ा….
ये पल बीत जाएगा, ये ज़ख्म भी भर जाएगा,
बस हमारी दोस्ती का ये हसीं मंज़र रह जाएगा,
ना हम रहेंगे, न हमारे ये जज़बात रहेंगे,
याद करने को बस साथ बिताया हर एक लम्हा रह जाएगा…
हम फिर भी अपनी इस दोस्ती को यादों में बसायेंगे,
लाख़ दूर सही पर बंद पलकों से भी आपको नज़र आयेंगे,
बीता हुआ वक़्त तो फिर भी वापस नही आता,
हम तो वो हमदम है,तुम जब याद करो तब चले आयेंगे...
Wednesday, July 29, 2009
दो कदम साथ चलके तो देखो...
नही मंज़ूर तुम्हे ये ज़िन्दगी भर का साथ ना सही,
दो क़दम मेरे साथ चलके तो देखो,
दिख जाएगी वोह बेपनाह तड़प और मोहब्बत,
एक बार इस दिल में झाँक के तो देखो…
चाहत नहीं की हर पल दिन का गुज़रे तुम्हारे साथ,
कोई और दो पल जो गुज़ारे तुम्हारे साथ तो अच्छा नहीं लगता,
मंज़ूर है की तुम ना चाहो मुझे कभी भी ,
कोई और जो तुम्हे चाहे तो अच्छा नही लगता…
एक क़दम पीछे जो मुड़के देखा तो सीधा रास्ता भी खाई नज़र आई,
किसी के बारे में इतना सोचते थे की सोच का मतलब ही वो बन
राह देखते रहे तुम उसके इंतज़ार में और ज़िन्दगी पीछे रह गई …
अब इस तजुर्बे के बाद तमाम उम्र तुम अकेले न रहना,
तन्हाई से बेहतर मेरे दो पल का साथ ही सही,
ये ना सोचना कभी की अकेलेपन में नही कोई ग़म,
परछाई को देखोगे जब अपनी तो कहोगे यह हम नही…
-- नीरज
Wednesday, May 20, 2009
ख्वाब में भी मेरे अपने न हुए...
ख्वाबों के समंदर में दिल गोते खा रहा था,
कमबख्त इस बदकिस्मती की इन्तेहा तो देखो,
ख़्वाब में भी आपका आँचल हाथों से फिसलता जा रहा था…
ये जानता है दिल की आप कभी हमारे नही हो सकते,
फिर भी इस दिल को खुदा से आपका साथ मांगने की आदत हो गई है,
दोस्तों के कई काफ़िले निकले और हमें अकेला छोड़ गए,
क्या करें की अब तनहा जीने की आदत हो गई है…
आपने कहा मिटा दो अपनी यादों से मेरा हर ज़र्रा,
किसी और से कर लो वफ़ा के वादे,
इश्क में बस इतनी सी नादानी हो गई हमसे,
आपके साथ गुज़ारा हर लम्हा बन गया तमाम उमर भर की यादें…
ऐसा नही की आपको भूलने की कोशिश नही की इस दिल ने,
उन हसीन यादों को दफना न सके बताओ हम क्या करें,
धीरे धीरे से रखा था हर कदम आपकी दुनिया में,
के आप न आए हमारे ख्वाबों को सजाने बताओ हम क्या करें...
-नीरज
Monday, May 11, 2009
इक ज़माना बीत गया
अश्कों के मोती छलके मेरी आंखों से,
इक पल गुज़रता है यूँ एक बरस के जैसे,
अब तो लगता है इक ज़माना बीत गया आपके प्यार में...
इन खुली बाँहों में समा जाते आप मोम से पिघलकर,
आंखों में अपनी वफ़ा का समंदर समेटे हुए,
होंठ जो सिल जाते हमारे, फिर रूह कहाँ जुदा होती,
तमाम उम्र गुजार देते बंदगी में, आपको अपना खुदा मानकर...
राह देखता हूँ अब मैं, आ जाओ आप कभी कहीं से,
सूख गई है अब ये आँखें, होता नही दर्द का एहसास,
खुदा की नाराज़गी का आलम तो देखो,
न हो हमें खुशी का एहसास, तो आप जैसी रूह न डाली कहीं किसी में...
प्यार हो हमारा मिटटी के दो हिस्सों जैसा, इक मैं और इक तुम,
दोनों मुजस्समों को तोड़ के फिर ऐसे जोड़ दो,
तुम में कुछ मैं रह जाऊं,
मुझ में कुछ तुम रह जाओ...
-नीरज
Tuesday, December 9, 2008
वो लम्हे...
गिला नही हमें आपकी बेरूखी का ,
हम तो हैरान हैं इस बात पे,
सिसकती आहों से हम जब सह रहे थे दर्द-ऐ-जुदाई,
इलज़ाम हमपे लगा दिया आपने बेवफाई का...
खुली आंखों से देखते थे हम वो मंजर,
जब रहते थे आप हमारी आगोश में,
न था हमारे दरमियां एक तिनके का भी फासला,
काश की थम जाता वो लम्हा सारी उमर...
मंजूर थी सारी कायनात से रंजिश आपकी चाहत में,
दुआओं में हर पल आप ही थे हमारे,
नादान थे हम, और थे अनजान इस बात से,
इश्क़ तो ख़ुदा से भी नही मिलती खैरात में...
हसरतों पे हमारी, इस ज़माने का सख्त पहरा है,
न जाने कौन सी उम्मीद पे अब जाके यह दिल ठहरा है,
आंखों से मेरी छलकते हुए इस अश्क और गम की कसम,
आपके लिए मेरे जज्बातों का ये सागर, बहुत गहरा है...
किनारा नही है अब हमारी आंसुओं की इस कश्ती का ,
चाहत में आपकी बहुत दूर निकल आए हैं अब हम,
खुश रहो तुम सदा, है ये गुज़ारिश मेरी,
हो नसीब तुम्हें हर वो सुख जो हमें मिल न सका...
- नीरज
Thursday, December 4, 2008
कैसे करूँ अंदाज़ ऐ बयान...
थी सोच ये हमारी की नजदीकियाँ सुकुन देती हैं ,
पाया ख़ुद को आपके करीब तो हुआ ये एहसास,
हर पल रहा करते हैं अब कश्मोकश में,
अब है ये जाना, कम्बख्त बस बेचेनी देती हैं...
कभी सोचता हूँ की कह दूँ ये हाल-ए-दिल अपना,
कभी लब्ज़ नही मिलते कभी एहसास खो जाते हैं,
बरसों से धूल पड़ी है जिन एहसासों पे,
कुछ और पल उन्हें सोने दिया जाए तो क्या जाता है...
अब तो है बस आपकी साँसों की खुशबू को दिल में बसाने का इरादा,
टूट जाए साँसों का ये सिलसिला, न टूटेगा हमारा ये वादा,
बेपनाह मोहब्बत की वो मिसाल कायम करूँ की हो जाए आपको ये येकिन,
न चाहेगा आपको कभी, कोई इस आशिक से ज्यादा...
अब तो बस दिन-ब-दिन बढ़ती जायेगी ये उल्फत,
एक पल भी आपसे जुदा होना न गवारा होगा,
संभाल के रखा था जजबातों की तिजोरी में जिस दिल को,
वो ना अब कभी फिर हमारा होगा!!!
- नीरज
Monday, December 1, 2008
ख्वाहिश है चाँद को पाने की

ख्वाहिश है चाँद को पाने की,
मगर चांदनी है की हमसे ख़फा है,
आरज़ू है किसी के इश्क़ में लूट जाने की,
मग़र बिना पाए किसी को चाहना भी तो वफा है...
न चाहा हमने कभी ये इश्क का समन्दर,
हमें तो बस सच्चे मोहब्बत के इक पल की आस है,
वो पल जिसके सहारे ये ज़िन्दगी गुज़र जाए,
चाहत की उस इक बूँद की प्यास है...
ऐसा नही की हमने कभी मोहब्बत नही की,
हमने तो खुदा से ज्यादा उसकी बन्दगी की है,
किसी को तहे दिल से चाहना कोई खता तो नही,
ना पाने का गिला रखना इश्क की शर्मिंदगी है...
हम नही जानते ये तलाश कब खत्म होगी,
किसी दिन हमारी ज़िन्दगी भी किसी को अज़ीज़ होगी,
ना छोडेंगे हम कभी उम्मीद का ये दामन,
साँसे थम भी जायें तो ये खुली पलकें इंतज़ार करेंगी...
- नीरज