Sunday, January 2, 2011

कशमोकश में है ये दिल...



लाख कोशिश की मैंने तुझसे प्यार ना करूँ,
हर बीता लम्हा मुझे तेरे और करीब लाया,
जो चाहा तेरी आँखों में ना देखूं,
इस क़दर उनमे डूबा फिर उभर ना पाया...

दिल ने तो सोचा कुछ हसीन पल गुज़ार लूँ तेरे संग,
उसे क्या पता था ये आदत भी कम्बख्त चीज़ अजीब है,
वोह कुछ पल कुछ यूँ समा गए इस दिल में,
नज़रों से दूर मेरे तू कितनी भी सही, रूह के हर पल करीब है...

हर सुबह जब तुम अपनी नाज़ुक पलकों को भिगोती,
बन कर पानी की वो बूँद क़ाश मैं वहाँ होता,
हकीकत नहीं तो एक फ़साना बनके ही सही,
तेरे ख्वाबों को सजाने को काश मैं वहाँ होता...

कैसे कहूँ ये शाम हसीन तुझसे है, ये चांदनी रोशन तुझसे है,
मेरे होंठों पे आने और ना आने वाली हर मुस्कान तुझसे है,
सोचा खुदा से मांग लूँ तुझे इबादत में,
पर मेरी किसमत तो देख वो भी तेरा दीवाना निकला...

--- नीरज