Sunday, January 2, 2011

कशमोकश में है ये दिल...



लाख कोशिश की मैंने तुझसे प्यार ना करूँ,
हर बीता लम्हा मुझे तेरे और करीब लाया,
जो चाहा तेरी आँखों में ना देखूं,
इस क़दर उनमे डूबा फिर उभर ना पाया...

दिल ने तो सोचा कुछ हसीन पल गुज़ार लूँ तेरे संग,
उसे क्या पता था ये आदत भी कम्बख्त चीज़ अजीब है,
वोह कुछ पल कुछ यूँ समा गए इस दिल में,
नज़रों से दूर मेरे तू कितनी भी सही, रूह के हर पल करीब है...

हर सुबह जब तुम अपनी नाज़ुक पलकों को भिगोती,
बन कर पानी की वो बूँद क़ाश मैं वहाँ होता,
हकीकत नहीं तो एक फ़साना बनके ही सही,
तेरे ख्वाबों को सजाने को काश मैं वहाँ होता...

कैसे कहूँ ये शाम हसीन तुझसे है, ये चांदनी रोशन तुझसे है,
मेरे होंठों पे आने और ना आने वाली हर मुस्कान तुझसे है,
सोचा खुदा से मांग लूँ तुझे इबादत में,
पर मेरी किसमत तो देख वो भी तेरा दीवाना निकला...

--- नीरज

Monday, December 27, 2010

हालत ना पूछो इस दिल की..

हालत ना पूछो इस दिल की,
तुमसे ही हम अपने दिल का पता पूछते हैं,
जो होश में आ पाते एक पल के लिए तो बयान कर पाते,
तेरे इश्क में फ़िदा हम तो बस जीने का बहाना करते हैं...

Monday, May 24, 2010

खता क्या है हमारी...

जिनके दिल के हम सबसे करीब थे,
चन्द दिनों में उन्होंने बेगाना कर दिया,
जो पूछी हमने उनसे अपनी ख़ता
बेरहमी का इलज़ाम हमपे उन्होंने लगा दिया...

- नीरज

Sunday, May 2, 2010

ये दर्द अब सहा नहीं जाता..

खुदा करे एक दिन ऐसा भी आये,
जब वोह तड़पे हमारी एक झलक को,
इस क़दर दूर हो जाएँ जब वोह पास हमारे आये,
चूम न सकें वोह कभी हमारी पलकों को...

काश एक दिन ऐसा भी आता,
जब हमारा ये दिल उनके पास होता,
तो फिर महसूस कर सकते वोह हमारे दर्द को,
फिर शायेद यूँ न हमें ठुकराया होता...

हमारी मोहब्बत में थी इतनी कशिश,
उन्हें बना दिया एक फूल जो हमेशा मेहेकता है,
उनकी बेरुखी भी कोई कम न थी,
हमें बना दिया वोह काँटा जो हर पल चुभता है...

सोचा दिल से नफरत करें उनसे कभी हम,
ऐसा हो की तरसे वोह भी किसी के प्यार को,
कुदरत का तमाशा तो देखो ऐ दोस्तों,
हमारी बददुआ भी दुआ बनके लगी यार को...

-नीरज

Sunday, January 10, 2010

आखिर क्यूँ...

कहते हो कोई कमी नहीं मुझमे,फिर क्यूँ अपना नहीं सकते,
क्या हमारी बेइंतेहा मोहब्बत और नीयत पर भरोसा नहीं,
दिल आपके क़दमों में रख दिया हमने कबसे ऐ संगदिल सनम,
और आप कहते हो हमें झुककर ज़मीन पर देखने की आदत नहीं…


ऐसा तो नहीं की खुदा ने तुम्हे पत्थर दिल बनाया है,
इश्क में फ़ना हो जाना तो हमने तुमसे ही सिखा है,
क्यूं फिर प्यार की एक बूँद के लिए तड़पाते हो हमें,
जब इश्क का समंदर तुम्हारे दिल में बहता है…


खुदा से भी ज्यादा खौफ़ है दिल में तुमसे दूर जाने का,
इसलिए दिखा न सका तुम्हे पाने की ये बेक़रारी,
सोचा क्या पाऊँगा ऐसी इज़हार-ए-मोहब्बत से,
जो तेरे बिछड़ने का दर्द साथ लेके आएगी…


चैन से बैठे हो तुम आज भी हमें तड़पता देखकर,
इस बात की तसल्ली है तुम्हे,की मेरी आखरी सांस तुम्हारे नाम की ना होगी,
शायेद इस बात से बेखबर हो की मौत सिर्फ जिस्म मिटा देती है,
क्या कभी इस रुह से खुद को जुदा कर पाओगी…

--- नीरज

Monday, November 30, 2009

तुझे भूलना मुमकिन नहीं...

आज जब बैठे थे तेरी यादों को मिटाने की ज़दोजेहेद में ,
एक हाथ में जाम और दूसरे में ज़हर का प्याला लिए,
कम्बख्त इस पेशोपेश में पड़ गया हमारा ये घायल मनं,
जब ये नींद कभी हमारी न हुई तो ये मौत क्यों न बेवफाई करेगी...

इलज़ाम तो बहुत लगाया तुमने हमपे,
कभी खुदगर्ज़ी का तो कभी बेरुख़ी का,
इक बार तो अपनेपन से हक जताया होता हमपे,
साड़ी दुनिया को छोर चले आते हम जो तुमने हमें पराया न किया होता…

दिल हमारा था ये ज़ख़्मी ,पर आपसे छुपाना पड़ा,
आँखें हमारी नम थी पर मुसुकराना भी पड़ा,
अजीब बेदर्द होते है ये एह्सास के रिश्ते,
रूठना चाहते थे आपसे ,पर मनाना पड़ा….

ये पल बीत जाएगा, ये ज़ख्म भी भर जाएगा,
बस हमारी दोस्ती का ये हसीं मंज़र रह जाएगा,
ना हम रहेंगे, न हमारे ये जज़बात रहेंगे,
याद करने को बस साथ बिताया हर एक लम्हा रह जाएगा…

हम फिर भी अपनी इस दोस्ती को यादों में बसायेंगे,
लाख़ दूर सही पर बंद पलकों से भी आपको नज़र आयेंगे,
बीता हुआ वक़्त तो फिर भी वापस नही आता,
हम तो वो हमदम है,तुम जब याद करो तब चले आयेंगे...

Wednesday, July 29, 2009

दो कदम साथ चलके तो देखो...

नही मंज़ूर तुम्हे ये ज़िन्दगी भर का साथ ना सही,

दो क़दम मेरे साथ चलके तो देखो,

दिख जाएगी वोह बेपनाह तड़प और मोहब्बत,

एक बार इस दिल में झाँक के तो देखो…


चाहत नहीं की हर पल दिन का गुज़रे तुम्हारे साथ,

कोई और दो पल जो गुज़ारे तुम्हारे साथ तो अच्छा नहीं लगता,

मंज़ूर है की तुम ना चाहो मुझे कभी भी ,

कोई और जो तुम्हे चाहे तो अच्छा नही लगता…


किसी के इतने करीब थे तुम की दूरी बर्दाश्त न कर सके,

एक क़दम पीछे जो मुड़के देखा तो सीधा रास्ता भी खाई नज़र आई,

किसी के बारे में इतना सोचते थे की सोच का मतलब ही वो बन गया,

राह देखते रहे तुम उसके इंतज़ार में और ज़िन्दगी पीछे रह गई …


अब इस तजुर्बे के बाद तमाम उम्र तुम अकेले न रहना,

तन्हाई से बेहतर मेरे दो पल का साथ ही सही,

ये ना सोचना कभी की अकेलेपन में नही कोई ग़म,

परछाई को देखोगे जब अपनी तो कहोगे यह हम नही…


-- नीरज

Wednesday, May 20, 2009

ख्वाब में भी मेरे अपने न हुए...

इस सोच में थे डूबे की काश आप हमारे होते,
ख्वाबों के समंदर में दिल गोते खा रहा था,
कमबख्त इस बदकिस्मती की इन्तेहा तो देखो,
ख़्वाब में भी आपका आँचल हाथों से फिसलता जा रहा था…

ये जानता है दिल की आप कभी हमारे नही हो सकते,
फिर भी इस दिल को खुदा से आपका साथ मांगने की आदत हो गई है,
दोस्तों के कई काफ़िले निकले और हमें अकेला छोड़ गए,
क्या करें की अब तनहा जीने की आदत हो गई है…

आपने कहा मिटा दो अपनी यादों से मेरा हर ज़र्रा,
किसी और से कर लो वफ़ा के वादे,
इश्क में बस इतनी सी नादानी हो गई हमसे,
आपके साथ गुज़ारा हर लम्हा बन गया तमाम उमर भर की यादें…

ऐसा नही की आपको भूलने की कोशिश नही की इस दिल ने,
उन हसीन यादों को दफना न सके बताओ हम क्या करें,
धीरे धीरे से रखा था हर कदम आपकी दुनिया में,
के आप न आए हमारे ख्वाबों को सजाने बताओ हम क्या करें...

-नीरज

Monday, May 11, 2009

इक ज़माना बीत गया

इक और लम्हा बीत गया आपके इंतज़ार में,
अश्कों के मोती छलके मेरी आंखों से,
इक पल गुज़रता है यूँ एक बरस के जैसे,
अब तो लगता है इक ज़माना बीत गया आपके प्यार में...

इन खुली बाँहों में समा जाते आप मोम से पिघलकर,
आंखों में अपनी वफ़ा का समंदर समेटे हुए,
होंठ जो सिल जाते हमारे, फिर रूह कहाँ जुदा होती,
तमाम उम्र गुजार देते बंदगी में, आपको अपना खुदा मानकर...

राह देखता हूँ अब मैं, आ जाओ आप कभी कहीं से,
सूख गई है अब ये आँखें, होता नही दर्द का एहसास,
खुदा की नाराज़गी का आलम तो देखो,
न हो हमें खुशी का एहसास, तो आप जैसी रूह न डाली कहीं किसी में...

प्यार हो हमारा मिटटी के दो हिस्सों जैसा, इक मैं और इक तुम,
दोनों मुजस्समों को तोड़ के फिर ऐसे जोड़ दो,
तुम में कुछ मैं रह जाऊं,
मुझ में कुछ तुम रह जाओ...

-नीरज

Tuesday, December 9, 2008

वो लम्हे...

गिला नही हमें आपकी बेरूखी का ,

हम तो हैरान हैं इस बात पे,

सिसकती आहों से हम जब सह रहे थे दर्द-ऐ-जुदाई,

इलज़ाम हमपे लगा दिया आपने बेवफाई का...


खुली आंखों से देखते थे हम वो मंजर,

जब रहते थे आप हमारी आगोश में,

न था हमारे दरमियां एक तिनके का भी फासला,

काश की थम जाता वो लम्हा सारी उमर...


मंजूर थी सारी कायनात से रंजिश आपकी चाहत में,

दुआओं में हर पल आप ही थे हमारे,

नादान थे हम, और थे अनजान इस बात से,

इश्क़ तो ख़ुदा से भी नही मिलती खैरात में...


हसरतों पे हमारी, इस ज़माने का सख्त पहरा है,

न जाने कौन सी उम्मीद पे अब जाके यह दिल ठहरा है,

आंखों से मेरी छलकते हुए इस अश्क और गम की कसम,

आपके लिए मेरे जज्बातों का ये सागर, बहुत गहरा है...


किनारा नही है अब हमारी आंसुओं की इस कश्ती का ,

चाहत में आपकी बहुत दूर निकल आए हैं अब हम,

खुश रहो तुम सदा, है ये गुज़ारिश मेरी,

हो नसीब तुम्हें हर वो सुख जो हमें मिल न सका...


- नीरज