नही मंज़ूर तुम्हे ये ज़िन्दगी भर का साथ ना सही,
दो क़दम मेरे साथ चलके तो देखो,
दिख जाएगी वोह बेपनाह तड़प और मोहब्बत,
एक बार इस दिल में झाँक के तो देखो…
चाहत नहीं की हर पल दिन का गुज़रे तुम्हारे साथ,
कोई और दो पल जो गुज़ारे तुम्हारे साथ तो अच्छा नहीं लगता,
मंज़ूर है की तुम ना चाहो मुझे कभी भी ,
कोई और जो तुम्हे चाहे तो अच्छा नही लगता…
एक क़दम पीछे जो मुड़के देखा तो सीधा रास्ता भी खाई नज़र आई,
किसी के बारे में इतना सोचते थे की सोच का मतलब ही वो बन
राह देखते रहे तुम उसके इंतज़ार में और ज़िन्दगी पीछे रह गई …
अब इस तजुर्बे के बाद तमाम उम्र तुम अकेले न रहना,
तन्हाई से बेहतर मेरे दो पल का साथ ही सही,
ये ना सोचना कभी की अकेलेपन में नही कोई ग़म,
परछाई को देखोगे जब अपनी तो कहोगे यह हम नही…
-- नीरज
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