Monday, November 30, 2009

तुझे भूलना मुमकिन नहीं...

आज जब बैठे थे तेरी यादों को मिटाने की ज़दोजेहेद में ,
एक हाथ में जाम और दूसरे में ज़हर का प्याला लिए,
कम्बख्त इस पेशोपेश में पड़ गया हमारा ये घायल मनं,
जब ये नींद कभी हमारी न हुई तो ये मौत क्यों न बेवफाई करेगी...

इलज़ाम तो बहुत लगाया तुमने हमपे,
कभी खुदगर्ज़ी का तो कभी बेरुख़ी का,
इक बार तो अपनेपन से हक जताया होता हमपे,
साड़ी दुनिया को छोर चले आते हम जो तुमने हमें पराया न किया होता…

दिल हमारा था ये ज़ख़्मी ,पर आपसे छुपाना पड़ा,
आँखें हमारी नम थी पर मुसुकराना भी पड़ा,
अजीब बेदर्द होते है ये एह्सास के रिश्ते,
रूठना चाहते थे आपसे ,पर मनाना पड़ा….

ये पल बीत जाएगा, ये ज़ख्म भी भर जाएगा,
बस हमारी दोस्ती का ये हसीं मंज़र रह जाएगा,
ना हम रहेंगे, न हमारे ये जज़बात रहेंगे,
याद करने को बस साथ बिताया हर एक लम्हा रह जाएगा…

हम फिर भी अपनी इस दोस्ती को यादों में बसायेंगे,
लाख़ दूर सही पर बंद पलकों से भी आपको नज़र आयेंगे,
बीता हुआ वक़्त तो फिर भी वापस नही आता,
हम तो वो हमदम है,तुम जब याद करो तब चले आयेंगे...