थी सोच ये हमारी की नजदीकियाँ सुकुन देती हैं ,
पाया ख़ुद को आपके करीब तो हुआ ये एहसास,
हर पल रहा करते हैं अब कश्मोकश में,
अब है ये जाना, कम्बख्त बस बेचेनी देती हैं...
कभी सोचता हूँ की कह दूँ ये हाल-ए-दिल अपना,
कभी लब्ज़ नही मिलते कभी एहसास खो जाते हैं,
बरसों से धूल पड़ी है जिन एहसासों पे,
कुछ और पल उन्हें सोने दिया जाए तो क्या जाता है...
अब तो है बस आपकी साँसों की खुशबू को दिल में बसाने का इरादा,
टूट जाए साँसों का ये सिलसिला, न टूटेगा हमारा ये वादा,
बेपनाह मोहब्बत की वो मिसाल कायम करूँ की हो जाए आपको ये येकिन,
न चाहेगा आपको कभी, कोई इस आशिक से ज्यादा...
अब तो बस दिन-ब-दिन बढ़ती जायेगी ये उल्फत,
एक पल भी आपसे जुदा होना न गवारा होगा,
संभाल के रखा था जजबातों की तिजोरी में जिस दिल को,
वो ना अब कभी फिर हमारा होगा!!!
- नीरज
2 comments:
Behetreen... Gajab... Bahut sahi...
I think this is better than the prev one... u r improving day by day... :)
Hellloo Niraj.......
Nice shayery...........
Andaz-e-bayaan to kafi achha hai
:-):-)
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