क्या हमारी बेइंतेहा मोहब्बत और नीयत पर भरोसा नहीं,
दिल आपके क़दमों में रख दिया हमने कबसे ऐ संगदिल सनम,
और आप कहते हो हमें झुककर ज़मीन पर देखने की आदत नहीं…
ऐसा तो नहीं की खुदा ने तुम्हे पत्थर दिल बनाया है,
इश्क में फ़ना हो जाना तो हमने तुमसे ही सिखा है,
क्यूं फिर प्यार की एक बूँद के लिए तड़पाते हो हमें,
जब इश्क का समंदर तुम्हारे दिल में बहता है…
खुदा से भी ज्यादा खौफ़ है दिल में तुमसे दूर जाने का,
इसलिए दिखा न सका तुम्हे पाने की ये बेक़रारी,
सोचा क्या पाऊँगा ऐसी इज़हार-ए-मोहब्बत से,
जो तेरे बिछड़ने का दर्द साथ लेके आएगी…
चैन से बैठे हो तुम आज भी हमें तड़पता देखकर,
इस बात की तसल्ली है तुम्हे,की मेरी आखरी सांस तुम्हारे नाम की ना होगी,
शायेद इस बात से बेखबर हो की मौत सिर्फ जिस्म मिटा देती है,
क्या कभी इस रुह से खुद को जुदा कर पाओगी…