गिला नही हमें आपकी बेरूखी का ,
हम तो हैरान हैं इस बात पे,
सिसकती आहों से हम जब सह रहे थे दर्द-ऐ-जुदाई,
इलज़ाम हमपे लगा दिया आपने बेवफाई का...
खुली आंखों से देखते थे हम वो मंजर,
जब रहते थे आप हमारी आगोश में,
न था हमारे दरमियां एक तिनके का भी फासला,
काश की थम जाता वो लम्हा सारी उमर...
मंजूर थी सारी कायनात से रंजिश आपकी चाहत में,
दुआओं में हर पल आप ही थे हमारे,
नादान थे हम, और थे अनजान इस बात से,
इश्क़ तो ख़ुदा से भी नही मिलती खैरात में...
हसरतों पे हमारी, इस ज़माने का सख्त पहरा है,
न जाने कौन सी उम्मीद पे अब जाके यह दिल ठहरा है,
आंखों से मेरी छलकते हुए इस अश्क और गम की कसम,
आपके लिए मेरे जज्बातों का ये सागर, बहुत गहरा है...
किनारा नही है अब हमारी आंसुओं की इस कश्ती का ,
चाहत में आपकी बहुत दूर निकल आए हैं अब हम,
खुश रहो तुम सदा, है ये गुज़ारिश मेरी,
हो नसीब तुम्हें हर वो सुख जो हमें मिल न सका...
- नीरज